उत्तरभारत में इसे नंबरदार और लंबरदार दोनों तरीके से बोला जाता है। दरअसल इस नाम के पीछे अगर देखें तो प्राचीन भारत की संयुक्त परिवार प्रथा नज़र आती है। निकट संबंधियों के भरे पूरे परिवार की समृद्ध और समझदारी भरी परंपरा अंग्रेजों के शासन संभालने तक सांसे ले रही थी। यह परंपरा सामाजिक सुरक्षा के लिहाज से चाहे बढ़िया थी मगर कुटुम्ब की संयुक्त अधिकार वाली संपत्तियों , ज़मीनों आदि का हिसाब किताब बड़ा
पेचीदा काम था। खासतौर पर सरकार को जब लगान चुकाने की बात सामने आती थी तब इसकी मुश्किलें नज़र आती थीं। मगर सरकार को तो लगान वसूलना ही होता था सो एक व्यस्था बनाई गई जिसके मुताबिक संयुक्त परिवार के एक व्यक्ति विशेष को इस काम के लिए मुकर्रर कर दिया जाता था कि वह सरकारी शुल्क, लगान या अन्य दस्तावेजी कामों के लिए उत्तरदायी होगा। इस पूरी कार्रवाई का नंबर देखर रजिस्ट्रेशन होता था यानी वह व्यक्ति नंबर के ज़रिये रजिस्टर्ड होता इसलिए उसे नंबरदार कहा जाने लगा। वहीं व्यक्ति बाद में समूचे गांव से राजस्व वसूली के लिए भी प्रतिनिधि बनाया जाने लगा।
Thomas Jones’s LRB review (6 December 2018; archived) of Brutus: The Noble
Conspirator by Kathryn Tempest has lots of biographical and historical
details, ...
1 comment:
शुक्रिया साहेब,
सुखद आश्चर्य हुआ कि आप जैसे अंग्रेजी के विद्वान ने मेरे ब्लाग को देखा । आपकी टिप्पणी अगर ब्लाग पर पढ़ पाता तो और खुशी होती। बहरहाल, शुक्रिया...
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